भगवान को मंदिर से ज्यादा मनुष्य का हृदय पसंद है, क्योंकि मंदिर में इंसान की चलती है, हृदय में भगवान की।

Bhajan Sangrah

प्रार्थना शब्दों से नहीं हृदय से होनी चाहिए, क्योंकि ईश्वर उनकी भी सुनते है जो बोल नहीं सकते।

Bhajan Sangrah

जिस तरह थोड़ी सी औषधि भयंकर रोगों को शांत कर देती है, उसी तरह ईश्वर की थोड़ी सी स्तुति बहुत से कष्ट और दुखों का नाश कर देती है l

Bhajan Sangrah

शरीर से प्रेम हैं तो आसन करें, साँस से प्रेम है तो प्राणायाम करें, आत्मा से प्रेम है तो ध्यान करें, और परमात्मा से प्रेम है तो समर्पण करें।