Current Date: 07 Nov, 2024

अजी हार के, कहाँ जाओगे तुम

- सुमित्रा बनर्जी


अजी हार कर के,
कहाँ जाओगे तुम,
जहाँ जाओगे तुम,
इन्हे पाओगे तुम,
अजी हार कर कें।।

तर्ज – अजी रूठ कर अब।

वचन जो दिया है,
निभाता रहेगा,
ये हारे हुए को,
जीताता रहेगा,
चाहे लाख पर्दो में,
छुपकर के रह लो,
मगर इनको हरपल,
नज़र आओगे तुम,
अजी हार कर कें,
कहाँ जाओगे तुम।।

जो दिल में छिपा है,
इन्हे तू बता दे,
तेरे मन की पीड़ा,
इन्हे तू सुना दे,
गिरे को गिराना,
है रीत पुरानी,
मगर इनको पा के,
सम्भल जाओगे तुम,
अजी हार कर कें,
कहाँ जाओगे तुम।।

कहे ‘श्याम’ इनसे,
तू रिश्ता बना ले,
गमो की तू बदली,
को पल में हटा ले,
चाहे जाओ ना जाओ,
फिर तुम कहीं पे,
मगर जिंदगी भर,
यहाँ आओगे तुम,
अजी हार कर कें,
कहाँ जाओगे तुम।।

अजी हार कर के,
कहाँ जाओगे तुम,
जहाँ जाओगे तुम,
इन्हे पाओगे तुम,
अजी हार कर कें।।

अगर आपको यह भजन अच्छा लगा हो तो कृपया इसे अन्य लोगो तक साझा करें।