Current Date: 17 May, 2024
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आल्हा बेटियां क्यों होती है पराई - Traditional


F:-        मुरली मनोहर बांके बिहारी देवकी नंदन दया निधान 
हर बेटी के दुःख की गाथा संजो करती आज बखान 
परम्परा है किसी जग की इसे कोई नहीं अनजान 
बनी पराई बेटी किसी उसकी नहीं कोई पहचान 
पड़ा छोड़ना अपना आंगन छोड़ना पड़ता उसको द्वार 
शादी जब हो जाती उसकी बनता उसका नया परिवार 
कोई बदल ना पाया देखो गई है इसे दुनिया हार 
अपने दिल पे रख कर पत्थर हर बेटी करती स्वीकार 
अपने दिल पे रख कर पत्थर

अपने दिल पे रख कर पत्थर हर बेटी करती स्वीकार 
दुखी नहीं तुम होना बेटी होना नहीं बिलकुल परेशान 
जन्म लिया जिस घर में तुमने उस घर में बेटी मेहमान 
हर बेटी से हम कहते है बात हमारी लेना मान 
पीहर या ससुराल में रहना बन के रहना फूल समान
खुद महाको सबको महकाओ घर को बना दो चमन समान 
करना काम सदा तुम ऐसा मात पिता को हो अभिमान 
गलती चाहे कोई करो ना एक बार का रखना ध्यान 
पुरुषों की नहीं होती परीक्षा नारी का होता इम्तिहान 
पुरुषों की नहीं होती परीक्षा

पुरुषों की नहीं होती परीक्षा नारी का होता इम्तिहान 
हर बेटी के कोमल मन में बचपन से ही उठे सवाल 
छोड़ के जाना है ये आंगन किसी भी सूरत में हर हाल 
जितने दिन का दाना पानी रह पाएंगे उतने साल
मात पिता भाई बहनो से हमको रखना नहीं मलाल 
हर बेटी है पंक्षी जैसी आज यहाँ कर दूजी डाल 
माँ बापू ने हाथ हमारा थमा दिया है जिसके साथ 
फिर चाहे कुछ भी हो जाए जन्म बिताये उसके साथ 
पालन करना है ये रीती चाहे जैसे हो हालात 
पालन करना है ये रीती

पालन करना है ये रीती चाहे जैसे हो हालात 
बचपन में अपने पीहर में रखती थी जिस चीज पे हाथ 
वो हर चीज हमारी होती नहीं काटते मेरी बात 
बहने हो या भैया भाभी देते थे सब मेरा साथ 
हर चीजों पर अपना पन था जब तक ना आयी बारात 
बदल गए क्यों एक ही क्षण में मेरे जीवन के हालात 
जन्म भूमि अजनबी हो गई किसी बिदाई की सौगात 
टीवी फ्रिज  हो चाहे किचन हो गाडी हो या मोटर कार 
मर्जी से उपयोग मै करती हर चीजों पर था अधिकार 
मर्जी से उपयोग मै करती

मर्जी से उपयोग मै करती हर चीजों पर था अधिकार 
जिस आंगन में खेली कूदी बेगाने से लगते आज 
बचपन की हर सखी सहेली लगता बदला सबका मिजाज 
अनजानी दो दिन में हो गई किसी है दुनिया की रिवाज 
बचपन की हर चीज छूट गई अपनेपन की हूँ मोहताज 
लाड़ली थी जिस माँ बापू की जिनके जीने का अरमान 
सबके दर्द मिटा देती थी मेरी नन्ही सी मुस्कान 
बाहो के झूले में झुलाते मुझ पे छिड़के अपनी जान 
शादी होते ही कहलायी उस घर आँगन की मेहमान 
शादी होते ही कहलायी

शादी होते ही कहलायी उस घर आँगन की मेहमान 
पढ़ लिखकर जब बड़ी हुयी मै चिंता माँ को रही सताये 
पिले करने हाथ हमारे वर की खोज में माँ लग जाए 
बेटी को कोई कष्ट ना हो कोई मन में ऐसा करे विचार 
अपनी हैसियत से भी अच्छा कोई जो मिलता परिवार 
लगन हमारी कर के माई देती सर से भोज उतार 
कमी पडी ना किसी चीज की दिए मुझे इतने उपहार 
क्षमता थी माँ बाप की जितनी दिया मुझे कई गुना हजार 
रोते रोते किया बिदाई आंसू में डूबा परिवार 
रोते रोते किया बिदाई

रोते रोते किया बिदाई आंसू में डूबा परिवार 
रोते हुए माँ ने समझाया बेटी सुन ले बारम्बार 
आज से तू हो गई पराई आएगी यहाँ कभी कभार 
यहाँ से तेरी डोली उठी है उस घर को कर ले स्वीकार 
दोनों कुल की लाज बचना माने तुम उपदेश हमार 
लिपटी रही माता से बेटी सुनती रही माँ के उदगार 
पिता भाई सब लगे चुकाने बहती रही कजरे की धार 
जिसके घर से बेटी जाए वही जाने कन्यादान 
सोपे नए लोगो को कन्या माता के जाते है प्राण 
सोपे नए लोगो को कन्या

सोपे नए लोगो को कन्या माता के जाते है प्राण 
बेटी करे शिकायत माँ से मुझको है इस बात का खेद 
बेटी और बेटे में आखिर युगो युगो से इतना भेद 
बेटी को तू वर देती है बेटे को घर मिलता काये 
क्या तेरी औलाद नहीं मै मुझको कोई दे समझाए 
बेटे को घर में रखती है बेटी को दे विदा कराये 
ये कैसी कुदरत की रीती इसका कोई नहीं उपाए 
दौलत का कुछ हिस्सा दे कर घर से मुझको दिया निकाल 
बाकी की जागीर है जितनी देती बेटे को हर हाल 
बाकी की जागीर है जितनी

बाकी की जागीर है जितनी देती बेटे को हर हाल 
ऐसा क्यों होता माई बेटी निभाए हर दस्तूर 
बेटा रहता पास में माँ के बेटी रहती माँ से दूर 
माँ समझाती है बेटी को है त्रेता सतयुग की रीत 
ये कलयुग की रीत नहीं है यहाँ गई है सदिया बीत 
मै भी तो हूँ बेटी किसी की छोड़ के माँ को आना पड़ा 
जैसे आज तुझे दुःख भारी मैंने में भी दुःख सहा बड़ा 
रीत निभाने का जब उतर आज यहाँ बेटी को मिला 
सारे सिकबे दूर हो गए रही ना माँ से कोई गिला
सारे सिकबे दूर हो गए
सारे सिकबे दूर हो गए रही ना माँ से कोई गिला
हर बेटी को माँ बतलाये मानो तुम मेरा सन्देश 
करे बिदाई माँ जब तेरी माँ से रखना नहीं कलेश 
दुनिया में नारी जा जीवन समझो है धरती का रूप 
हसंते रोते सब कुछ सहना सर पे छांव हो या धुप 
घर की जिम्मेदारी उठाना है तेरे जीवन का सार 
कुदरत जैसा बोझ उठाती सहनशीलता की अवतार 
हम नारी से जब बसता है हमसे बढ़ता है परिवार 
अगर नारियां कोई ना होती होता वीराना संसार 
अगर नारियां कोई ना होती

अगर नारियां कोई ना होती होता वीराना संसार 
दुःख ना मनाये हम ना रोये करे सदा हम खुद पर नाज 
नारी के कारन ही जगमग युगो युगो से रहा समाज 
शक्ति का ही रूप है नारी नारी में ही हर ख़ुशी का राज 
नारी करुणा दया का मुहरत सुंदरता का पहरे ताज 
नारी है हर सुख की जननी नारी जनती है संतान 
नारी देती बेटा बेटी कुटुमब बढ़ता है आसार 
नारी को जो नरक बताते वो मुर्ख है वो नादान 
नारी नर को जीवन देती नारी है हर सुख की खान 
नारी नर को जीवन देती

नारी नर को जीवन देती नारी है हर सुख की खान 
बेटी ने जब माँ के मुख से सूना है नारी का उपकार 
नारी होने पर बेटी को आज हुए है ख़ुशी अपार 
कोई माने या ना माने नारी है बहुरंगी नार 
आंगन की किलकारी है घर परिवार की बनी बहार 
नारी जैसा कभी किसी ने किया नहीं है ऐसा त्यागा 
भूखी प्यासी रहे उपासी पाए लम्बी उम्र सुहाग 
हंस कर दिल में दबा कर रखती दुनिया भर के गम की आग 
फूल समर्पण के है जिसमे नारी वही महकता बाग़ 
फूल समर्पण के है जिसमे

फूल समर्पण के है जिसमे नारी वही महकता बाग़ 
पार्वती गिरजा महारानी जो थी शक्ति की अवतार 
बेटी इनको बनाना पड़ा है मात पिता का लिया दुलार 
इनकी भी तो हुयी बिदाई छोड़ा था बाबुल का द्वार 
इनका भी परिवार बढ़ा था पति महादेव शिव त्रिपुरार 
जनक नंदनी सीता मैया इनका कैसे भूले नाम 
ये भी तो ससुराल में आयी जिनके स्वामी रघुबर राम 
लिखा निरंजन ने ये आल्हा मिले बेटियों को पैगाम 
संजो गाती है आदर से हर नारी को कर प्रणाम 
हर नारी को कर प्रणाम 

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