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ज्ञानवर्धक कहानी : माता लक्ष्मी बनी बेटी (Moral Storie : Mata Laxmi Bani Beti) - Bhajan Sangrah



चितौली
नाम का एक गांव था वहां पर एक जयंत नाम का आदमी अपनी पत्नी अपर्णा और अपने तीन बेटो के साथ रहता था 
जयंत अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए जंगल से लकड़ियां काट कर लाता और फिर उन्हे बेच कर अपना गुजारा करता जयंत माता लक्ष्मी का बहुत बड़ा भक्त था वह हमेशा उन्हीं की धुन में खोया रहता 
उसके तीन बेटो के होते हुए भी उसे यह काम अकेले ही करना पड़ता था क्योंकि उसके तीनों बेटे बहुत आलसी थे कुछ काम नही करते थे,,,,,पूरे दिन खाना खा कर बस पड़े रहते थे 
जयंत और अपर्णा दोनो ही अपने बेटो से बहुत परेशान थे। एक दिन दोनो आपस में बात करते है 
 
अपर्णा = सुनिए जी मुझे अपने पुत्रों की  हमेशा ही चिंता लगी रहती है कि हमारे बाद इनका क्या होगा
 
 
जयंत = तुम चिंता मत करो अपर्णा,,,लक्ष्मी माता इन्हें जरूर सद्बुद्धि देंगी और इनके इस आलस को खत्म कर देंगी तुम भरोसा रखो।
 
उनकी ये सारी बाते लक्ष्मी जी बैकुंठ धाम से श्री कृष्ण के साथ देख रही थी 
विष्णु जी माता लक्ष्मी से कहते है 
 
विष्णु जी = देवी आपको अपने इस भक्त की सहायता करनी चाहिए यह आपका परम भक्त है 
 
लक्ष्मी जी= मैं भी यही सोच रही थी भगवन की  मुझे इसकी सहायता करनी चाहिए  
 
और फिर लक्ष्मी माता अंतर्ध्यान हो जाती है 
रोज ही की तरह जयंत सुबह लक्ष्मी जी की उपासना करके जंगल में लकड़ियां काटने के लिए जाता है,,,,,,,वह लकड़ियां काट ही रहा होता है कि पीछे से उसे एक कन्या की आवाज आती है,,,,,,,,,,वह पीछे पलटता है तो देखता है कि एक छोटी सी बच्ची लगभग 12-13 साल की लग रही थी वह उसके सामने खड़ी थी जयंत उससे पूछता है
 
 
जयंत= तुम कौन हो बेटी और अकेले इस जंगल में क्या कर रही हो 
 
कन्या= मेरा नाम लक्ष्मी है मेरा इस दुनिया में कोई नही है मैं यही जंगल में रहती हूं,,,,,,,और फल तोड़ कर खाती हूं आप मुझे अपने साथ रख लीजिए मैं आपके सारे काम करूंगी 
 
जयंत को उस पर दया आ जाती है वह मन में सोचता है कि वह इसे कैसे रखेगा
 
जयंत सोचता है = मैं इसे कैसे अपने साथ रख सकता हूं। हमारे पास तो खुद खाने के लिए पर्याप्त भोजन नही होता तो मैं 
इसे क्या दूंगा खाने के लिए। 
 
वह कन्या फिर कहती है 
 
कन्या = क्या हुआ आप मुझे अपने साथ नही ले चलेंगे
 
वह इतने मीठे स्वर और प्रेम से यह बात कहती है कि जयंत का हृदय पसीज जाता है और वो उसे अपने साथ रखने के लिए मान जाता है 
वह कहता है
 
जयंत= जहा मैं अपने तीन आलसी बेटो को खिला सकता हूं तो इसे भी खिला ही दूंगा,,,,,रोज थोड़ा ज्यादा काम कर लिया करूंगा इसमें कौन सी बड़ी बात है ,,,,,तुम चलो बेटी मेरे साथ मेरे घर पर अब से तुम मेरी पुत्री बन कर रहना।
 
कन्या खुश हो जाती है और दोनो घर आ जाते है 
अपर्णा जयंत के साथ उस लड़की को देख कर हैरान हो जाती है वह जयंत से पूछती है कि 
 
अपर्णा= ये कौन है स्वामी और ये आपके साथ यहां क्यों आई है
 
जयंत= अब से ये हमारे साथ रहेगी ये मुझे जंगल में मिली इसका कोई नही है अब से हम इसके मां बाप है और ये हमारी पुत्री
 
अपर्णा कहती है= ये आपने बहुत अच्छा काम किया है हमारी कोई बेटी भी नही थी मैं इसे अपनी ही पुत्री जैसा प्रेम करूंगी
 
लक्ष्मी अगले दिन से घर के सारे काम करने लगती है और एक एक करके घर का सारा काम निपटा देती है और अपर्णा को कुछ भी करने नही देती
अपर्णा उससे कहती है 
 
अपर्णा= तुम इतने सारे काम मत करो थक जाओगी लाओ मैं तुम्हारी मदद करती हूं।
 
लक्ष्मी= नही मां आप चिंता मत कीजिए आप आराम कीजिए मैं सारे काम कर लूंगी 
 
और वो घर के सारे काम कर लेती है
अपर्णा खाना बनाने के लिए जा ही रही होती है कि लक्ष्मी उससे कहती है 
 
लक्ष्मी= खाना बनाने जा रही हो मां
 
अपर्णा= हां बेटा खाना बनाने जा रही हूं तुम्हारे पिता जी आते होंगे न और तुम्हारे भाईयो को भी भूख लगी है 
 
लक्ष्मी= आप आराम करिए आज मैं खाना बनाऊंगी 
और सब उंगलियां चाटते रहे जायेंगे आप देखना 
 
अपर्णा= लेकिन,,,
लक्ष्मी= लेकिन,वेकिन कुछ नही आप जाइए मैं बनाती हूं खाना 
 
अपर्णा= ठीक है 
 
लक्ष्मी रसोई घर में जाती है तो आटा गूंथने के लिए प्लेट में आटा निकालती है और आटा अपने आप गूंथ जाता है,,,,,,, वह जैसे जैसे प्लेट निकाल कर रखती जाती है उसमे तरह-तरह के पकवान खीर, पूरी आते जाते है 
जब सब खाना खाने के लिए बैठते है और खाना खाना शुरू करते है तो जयंत एक निवाला खाते ही कहता है 
 
जयंत= अरे वाह अपर्णा आज तो खाना बहुत ही स्वादिष्ट बना है 
उनका एक बेटा कहता है 
 
बेटा1= हां पिताजी सही कहा खाना वाकई में काफी स्वादिष्ट है 
अपर्णा मुस्कुराते हुए कहती है 
 
अपर्णा= खाना तो स्वादिष्ट बना है लेकिन इसे मैंने नही बनाया 
उसका दूसरा बेटा पूछता है
 
बेटा2= तो फिर किसने बनाया इतना स्वादिष्ट खाना 
 
अपर्णा= लक्ष्मी ने बनाया है ये सारा खाना उसको धन्यवाद दो 
वो सभी बड़े ही चाव से खाना खा कर सो जाते है 
 
अगली सुबह लक्ष्मी, जयंत के साथ लकड़ियां काटने जाती है लकड़ियां काटने के बाद वह लकड़ियों के गट्ठर को उठा कर बाजार ले जाते है,,,,,,,बेचने के लिए,, वह गट्ठर को एक किनारे रख देता है और उसमे से लकड़ियां निकाल कर बेचता रहता है,,,,,,,,,वह बहुत सारी लकड़ियां बेच देता है फिर वो ध्यान देता है कि जितनी लकड़ियां वह काट कर लाया था उससे ज्यादा लकड़ियां वह बेच चुका है वह हैरान हो जाता है 
दरअसल लक्ष्मी अपनी शक्तियों से उस लकड़ी के गट्ठर को असीमित कर देती है वह लकड़ियां खतम ही नही होती है 
जयंत समझ जाता है कि ये काम लक्ष्मी ने किया है पर वह उस समय कुछ नही कहता वह बहुत सारा धन कमा कर जब रात में घर जाता है तो देखता है कि उसके तीनों बेटे अपर्णा की सेवा कर रहे है एक उसके पैर दबा रहा था तो दूसरा उसके हाथ और तीसरा घर के काम में लगा हुआ था 
उसे अपनी आंखों पर यकीन नही होता है 
जयंत लक्ष्मी के आगे हाथ जोड़ खड़ा हो जाता है और कहता है 
 
जयंत= आप कौन है देवी आप कोई साधारण कन्या नही है अपने असली रूप में आइए
 
लक्ष्मी अपने असली रूप देवी लक्ष्मी के रूप में आ जाती है 
घर के सारे लोग उसके सामने हाथ जोड़कर खड़े हो जाते है 
 
जयंत= आप इतने दिनो से हमारे घर में थी माता हम आपको पहचान नही पाए हमसे भूल हो गई है हमे माफ कर दीजिए 
 
माता लक्ष्मी= कोई बात नही पुत्र,,,,,,मैं तो यह तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हो कर तुम्हारी मदद करने आई थी,,,,,, मैंने तुम्हारी गरीबी को भी मिटा दिया और तुम्हारे बेटो के आलस्य को भी दूर के दिया है अब तुम आराम से अपना जीवन जी सकते हो
 
जयंत= आप धन्य है माता जी आपने इस गरीब की पुकार सुनी और हमारी मदद को आई,,,,,आपके दर्शन करके तो मैं धन्य हो गया हूं
 
लक्ष्मी माता अंतर्ध्यान हो जाती है और उसके बाद से जयंत के घर में धन की कोई कमी नही होती और उसके बेटे आलस्य को त्याग देते है
तो इस तरह देवी लक्ष्मी एक गरीब के घर में बेटी बन कर उसके घर को सवार देती है।
 

Singer - Bhajan Sangrah

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