Current Date: 09 May, 2024
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निर्जला एकदशी व्रत - Traditional


भूमिका
एकादशी व्रत हिन्दुओ में सबसे अधिक प्रचलित व्रत माना जाता है वर्ष में २४ एकादशियाँ आती हैं किन्तु इन सब एकादशियों में ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी सबसे बढ़कर फल देने वाली समझी जाती है क्यूंकि इस एक एकादशी का व्रत रखने से वर्ष भर की एकादशियों का फल प्राप्त होता है एकादशी का व्रत भगवन विष्णु की आराधना को समर्पित होता है इस एकादशी का व्रत कर के श्रद्धा और सामर्थ के अनुसार दान करना चाहिए इस दिन विधि पूर्वक जल कलश का दान करने वालों को पुरे साल की एकादशियों का फल मिलता है इस प्रकार जो इस पवित्र एकादशी का व्रत करता है वह समस्त पापो मे मुक्त हो जाता है 

व्रत कथा
जब वेद व्यास ने पांड़वो को चारों पुरुषार्थ धर्म अर्थ काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया था तब युधिष्ठिर ने कहा जनार्दन ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में जो एकादशी पड़ती हो कृपा उसका वर्णन कीजिए भगवान श्री कृष्ण ने कहा हे राजन इस का वर्णन परम् धर्मात्मा व्यास जी करेंगे क्योंकि ये सम्पूर्ण शास्त्रों के तत्वयज्ञ और वेदांगो के पारंगत विद्वान है तब वेद व्यास जी कहने लगे कृष्णा और शुक्ल पक्ष की एकादशी में अन खाना वर्जित है द्वादशी को स्नान कर के पवित्र होकर फूलों से भगवान केशव की पूजा करें फिर पहले ब्राह्मणों को भोजन दे कर अंत में स्वयं भोजन करे यह सुनकर भीमसेन बोले परम् बुद्धिमान पितामय: मेरी उत्तम बात सुनिए राजा युधिष्ठिर माता कुंती द्रोपदी नकुल और सहदेव ये एकादशी को कभी भोजन नहीं करते तथा मुझसे भी हमेशा यही कहते हैं कि भीमसेन एकादशी को तुम भी ना खाया करो परन्तु मै उन लोगो से यही कहता हूँ कि मुझसे भूख सही नहीं जाएगी भीमसेन की बात सुनकर व्यास जी ने कहा यदि तुम नरक को दूषित समझते हो और तुम्हे स्वर्गलोक की प्राप्ति अभीष्ट है तो दोनों पक्षों की एकादशियों के दिन भोजन नहीं करना भीमसेन बोले महान बुद्धिमान पितामह मै आपके सामने सच कहता हूँ मुझसे एक बार भोजन कर के भी व्रत नहीं किया जा सकता तो फिर उपवास करके मै कैसे रह सकता हूँ  मेरे उदार में  विक्र नामक अग्नि सदा प्रज्वलित रहती है अतः जब मै बहुत अधिक खाता हूँ तभी यह शांत होती है इसलिए महा मुनि इस लिए मै पुरे वर्ष भर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूँ जिससे स्वर्ग के प्राप्ति सुलभ हो तथा जिसके करने से मै कल्याण का भागी हो सकूँ ऐसा कोई एक व्रत निश्चय कर के बताईये मै उसका यथोचित रूप से पालन करूँगा व्यास जी ने कहा भीम ज्येष्ठ मास में सूर्य वृष राशि पर हो या मिथुन राशि पर शुक्ल पक्ष में जो एकादशी हो उसका यतन पूर्वक निर्जल व्रत करो केवल कुला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो उसको छोड़ कर किसी प्रकार का जल विद्वान पुरुष मुख में ना डाले अन्यथा व्रत भंग हो जाता है एकादशी को सूर्य उदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्य उदय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह व्रत पूर्ण होता है इसके बाद द्वादशी को प्रभात काल में स्नान कर के ब्राह्मणो को जल और स्वर्ण का दान करे इस प्रकार सत्कार्य पूरा कर के जितेन्द्रिय पुरुष ब्राह्मणों के साथ भोजन करें वर्ष भर में जितनी एकादशियाँ होती हैं उन सबका फल इस निर्जला एकादशी से मनुष्य प्राप्त कर लेता है इसमें तनिक भी संदेह नहीं शंख चक्र और गदा धारण करने वाले भगवान केशव ने मुझसे था यदि मानव सब कुछ छोड़ कर एक मात्र मेरी शरण में आ जाए और एकादशी को निराहार रहे तो वह सब पापों से छूट जाता है निर्जला एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन और जलमयी धेनू यानि पानी में खड़ी गाय का दान करना चाहिए इस दिन दक्षिणा और कई तरह की मिठाईयों से ब्रह्मणों को खुश करना चाहिए उनके संतुष्ट होने पर श्री हरी मोक्ष प्रदान करते हैं जिन्होंने श्री हरी की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस निर्जला एकादशी का व्रत किया है उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौ पीढ़ियों को और आनेवाली सौ पीढ़ियों को भगवान वासुदेव के परम् धाम में पहुँचा दिया है निर्जला एकादशी के दिन अन वस्त्र गौ जल सईया सुन्दर आसन कमंडल तथा छाता दान करने चाहिए जो श्रेष्ठ तथा सुपात्र ब्राह्मण को जूता दान करता है वह सोने के विमान पर बैठकर स्वर्ग लोक में प्रतष्ठित होता है जो इस एकादशी की महिमा को भक्ति पूर्वक सुनता व उसका वर्णन करता है स्वर्गलोक में जाता है चतुर्दशी युक्त अमावस्या को सूर्य ग्रहण के समय श्राद्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है वही फल इस कथा को सुनने से भी मिलता है जो इस प्रकार पूर्ण रूप से पापनाशनी एकादशी का व्रत करता है वह सब पापों से मुक्त हो आनंदमय पद को प्राप्त होता है यह सुनकर भीमसेन भी इस शुभ एकादशी का व्रत आरंभ कर दिया ! निर्जला यानि यह व्रत बिना जल ग्रहण किये और उपवास रख कर किया जाता है इस लिए यह व्रत कठिन तप और साधना के सामान महत्व रखता है यह व्रत मन को संयम सीखता है और शरीर को नयी ऊर्जा देता है इस कथा को सुनने से दोनों पुरुष और महिला दोनों पापो से मुक्त हो जाते हैं !

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