आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पापांकुशा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस बार यह शुभ तिथि 25 अक्टूबर दिन बुधवार को है। एकादशी के जिस व्रत से पापों को अंकुश लग जाए तो उस व्रत को पापांकुशा एकादशी कहा जाता है। वनवास से लौटने के बाद भगवान राम और उनके भाई भरत का मिलाप भी इसी एकादशी तिथि को हुआ था, इस वजह से इस तिथि का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस एकादशी में भगवान पद्मनाभ का पूजन और अर्चना की जाती है, जिससे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। आइए जानते हैं पापांकुशा एकादशी का महत्व, पूजा विधि और खास बातें...
पापांकुशा एकादशी का महत्व
पापांकुशा एकादशी का व्रत करने से जप-तप के समान फल की प्राप्ति होती है और तीन पीढ़ियों को पापों से मुक्ति मिल जाती है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से चंद्रमा के अशुभ प्रभाव से भी मुक्ति मिलती है और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति को यमलोक में किसी भी प्रकार की यातनाएं नहीं सहनी पड़ती। भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को इस एकादशी का महत्व बताते हुए कहा है कि यह एकादशी पाप का निरोध करती है अर्थात पाप कर्मों से रक्षा करती है।
इस तरह एकादशी का नाम
पापांकुशा एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप की पूजा की जाती है। इस व्रत के करने से अपने साथ-साथ अपने परिजनों को भी लाभ मिलता है। इस व्रत से ना सिर्फ मन शुद्ध होता है बल्कि अश्वमेघ और सूर्य यज्ञ के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है। पाप रूपी हाथ को व्रत के पुण्य रूप अंकुश से बांधने के कारण इस व्रत का नाम पापांकुशा एकादशी पड़ा। इस व्रत में मौन रहकर भगवद् स्मरण तथा कीर्तन भजन करना चाहिए। अगर किसी व्यक्ति से अनजाने में भी पाप हो जाए तो यह व्रत अवश्य करना चाहिए।
पापांकुशा एकादशी व्रत पूजन विधि
एकादशी तिथि पर ब्रह्म मुहूर्त उठकर स्नान आदि के बाद ईश्वर के सामने व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद एक चौकी पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर रखकर पूजा करनी चाहिए। सबसे पहले रोली अक्षत का तिलक लगाना चाहिए और सफेद फूल व तुलसी भगवान को अर्पित करें। इसके बाद घी के दीपक जलाएं और उनका भोग लगाकर आरती उतारें। इसके बाद विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। इस दिन एक समय फलाहार किया जाता है। एकादशी पर दान-पुण्य जरूर करना चाहिए। शाम के समय भी भगवान की आरती उतारें और ध्यान व कीर्तन करें। व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को भोजन और अन्न का दान करने के बाद व्रत का पारण करना चाहिए।
पापांकुशा एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक क्रूर बहेलिया रहता था। क्रोधन ने अपनी पूरी जिंदगी गलत कार्य जैसे हिंसा, मद्यपान, आदि में व्यतीत कर दी थी। जब उसके जीवन का अंतिम समय आया तब यमराज ने दूतों को क्रोधन को लाने को भेजा। यमदूतों ने क्रोधन को इस बात की जानकारी दे दी कि कल उसके जीवन का अंतिम दिन होगा। मृत्यु के भय से डरकर क्रोधन महर्षि अंगिरा की शरण में पहुंच गया। महर्षि ने क्रोधन की दशा को देखकर उस पर दया की और उसे पापाकुंशा एकादशी का व्रत करने को कहा। इस व्रत के करने से क्रोधन के सभी पाप नष्ट हो गए और भगवान की कृपा से मोक्ष की प्राप्ति हुई।
Singer - The Lekh
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