Current Date: 12 Oct, 2024

श्री यमुनाअष्टकम (Shree Yamuna Ashtkam)

- Prem Prakash Dubey


श्री यमुनाअष्टकम लिरिक्स हिंदी में (Shree Yamuna Ashtkam Lyrics in Hindi)

श्री यमुना अष्टकम श्रीमद वल्ल्भवाचार्य द्वारा विरचित दिव्य यमुना अष्टकम को श्रवण कीजिये यमनुजा यमुना जी को यमानुजा कहा गया है यानी यम की बहन है वो हर प्रकार के संकट से आपको मुक्ति देंगी आइये सद्चित होक ध्यान लगा के यमुना अष्टकम श्रवण कीजिये
नमामि यमुनामहं सकल सिद्धि हेतुं 
मुदा मुरारि पद पंकज स्फ़ुरदमन्द रेणुत्कटाम ।
तटस्थ नव कानन प्रकटमोद पुष्पाम्बुना 
सुरासुरसुपूजित स्मरपितुः श्रियं बिभ्रतीम ॥१॥

अर्थ :- 
मै सम्पूर्ण सिद्धिओं की हितु होता श्री यमुना जी को सानंद नमस्कार करता हूँ जो भगवान् मुरारी के चमकीली और अमंद महिमा वाली धुर धारण करने से अत्यंत उत्कर्ष को प्राप्त हुयी है और तटवती नूतन कानंद से सुशोभित जल राशि के द्वारा देव दानव वन्दित प्रदुम पिता भगवान् श्री कृष्ण की श्याम सुषमा को धारण करती है ऐसी माँ यमुना को मै प्रणाम करता हूँ

कलिन्द गिरि मस्तके पतदमन्दपूरोज्ज्वला
विलासगमनोल्लसत्प्रकटगण्ड्शैलोन्न्ता ।
सघोषगति दन्तुरा समधिरूढदोलोत्तमा
मुकुन्दरतिवर्द्धिनी जयति पद्मबन्धोः सुता ॥२॥

अर्थ :-
कलिंद पर्वत के शिखर पर गिरती हुयी तीन प्रवेग वाली जलधारा से जो अत्यंत उज्जवल जान पड़ती है ,लीला विलास पूर्वक चलने के कारण सोभायमान है सामने प्रकट हुयी चट्टानों से जिनका प्रवाह कुछ ऊँचा हो जाता है गंभीर गर्जन युक्त के कारण जिनमे ऊंची ऊंची लहरे उठती है  और ऊँचे नीचे प्रवाह के द्वारा जो उत्तम झूले पर झूलती हुयी सी प्रतीत होती है भगवान् श्री कृष्ण के प्रति प्रगाढ़ अनुराग की वृद्धि करने वाली वे सूर्य सुता यमुना सर्वत्र विजयनी हो रही है
भुवं भुवनपावनीमधिगतामनेकस्वनैः
प्रियाभिरिव सेवितां शुकमयूरहंसादिभिः ।
तरंगभुजकंकण प्रकटमुक्तिकावाकुका-
नितन्बतटसुन्दरीं नमत कृष्ण्तुर्यप्रियाम ॥३॥

अर्थ :-
जो इस भूतल पर प्राधारकर समस्त भुवन को पवित्र कर रही है शुक मयूर और हंस आदि पक्षी भाति भाति के कलरावो द्वारा प्रिय सखियों की भाति जिनकी सेवा कर रहे है जिनकी तरंग रुपी भुजाओं के कंगन में जड़े हुए मुक्त रुपी मोती के कण ही बालुका बन कर चमक रहे है तथा जो नितम्ब सदृश्य तटों के कारण अत्यंत सुन्दर जान पड़ती है उन श्री कृष्ण की चौथी पटरानी श्री यमुना जी को नमस्कार करो
अनन्तगुण भूषिते शिवविरंचिदेवस्तुते
घनाघननिभे सदा ध्रुवपराशराभीष्टदे ।
विशुद्ध मथुरातटे सकलगोपगोपीवृते
कृपाजलधिसंश्रिते मम मनः सुखं भावय ॥४॥

अर्थ :-
देवी यमुने तुम अनंत गुणों से विभूषित हो शिव और ब्रह्मा आदि देवता तुम्हारी स्तुति करते है मेघो की घटा के सामान तुम्हारी अंग कांति सदा श्याम है ध्रुव और परासर जैसे भक्तजनो को तुम अभिष्ट वस्त्र प्रदान करने वाली हो तुम्हारे तट पर विशुद्ध मथुरा पूरी सुशोभित है समस्त गोप और गोपियाँ सुंदरी तुम्हे घेरे रहती है तुम करुणा सागर भगवान् श्री कृष्ण के अस्रिध हो हे माँ यमुना मेरे अंत करण को सुखी बनाओ
यया चरणपद्मजा मुररिपोः प्रियं भावुका
समागमनतो भवत्सकलसिद्धिदा सेवताम ।
तया सह्शतामियात्कमलजा सपत्नीवय-
हरिप्रियकलिन्दया मनसि मे सदा स्थीयताम ॥५॥

अर्थ :-
भगवान् विष्णु के चरणार बिंदु से प्रकट हुयी गंगा जिनसे मिलने के कारण ही भगवान् को प्रिय हुई और अपने सेवक के लिए सम्पूर्ण सिद्धिओं को देने वाली उन यमुना जी की समता केवल लक्ष्मी जी कर सकती है और वह भी एक सपत्नी के सदृश्य ऐसी महत्व शालिनी श्री कृष्ण प्रिया कालीन नंदनी यमुना सदा मेरे में निवास करे
नमोस्तु यमुने सदा तव चरित्र मत्यद्भुतं
न जातु यमयातना भवति ते पयः पानतः ।
यमोपि भगिनीसुतान कथमुहन्ति दुष्टानपि
प्रियो भवति सेवनात्तव हरेर्यथा गोपिकाः ॥६॥
हे यमुने तुम्हे सदा नमस्कार है तुम्हारा चरित्र अत्यंत अद्भुत है तुम्हारा जल पीने से कभी यम यातना नहीं भोगनी पड़ती है अपनी बहन के पुत्र दुष्ट हो भी तो यमराज उन्हें कैसे मार सकते है तुम्हारी सेवा से मनुष्य गोपनागो की भाति श्याम सुंदर भगवान् श्री कृष्ण का प्रिय हो जाता है
ममास्तु तव सन्निधौ तनुनवत्वमेतावता
न दुर्लभतमारतिर्मुररिपौ मुकुन्दप्रिये ।
अतोस्तु तव लालना सुरधुनी परं सुंगमा-
त्तवैव भुवि कीर्तिता न तु कदापि पुष्टिस्थितैः ॥७॥

अर्थ :-
श्री कृष्ण प्रिय यमुने तुम्हारे समीप मेरे शरीर का नव निर्माण मुझे नूतन शरीर धारण करने का अवसर मिले इतने से ही मुरारी श्री कृष्ण में प्रगाढ़ अनुराग दुर्लभ रह जाता है अतः तुम्हारी अच्छी तरह स्तुति प्रसंसा होती रहे तुमको लाड लड़ाया जाए तुमसे मिलने के कारण ही देव नदी गंगा इस भूतल पर उत्कृष्ट बताई गई है परन्तु पुष्टिमार्गी वैष्णव ने तुम्हारे साथ संगम के बिना केवल गंगा की स्तुति नहीं की
स्तुति तव करोति कः कमलजासपत्नि प्रिये
हरेर्यदनुसेवया भवति सौख्यमामोक्षतः ।
इयं तव कथाधिका सकल गोपिका संगम-
स्मरश्रमजलाणुभिः सकल गात्रजैः संगमः ॥८॥

अर्थ :-
लक्ष्मी की पत्नी हरी प्रिय यमुने तुम्हारो स्तुति कौन कर सकता भगवान् की सेवा से निरंतर मोक्ष सुख प्राप्त होता है परन्तु तुम्हारे लिए विशेष महत्व की बात यह है की तुम्हारे जल का सेवन करने से सम्पूर्ण गोप सुंदरियों के साथ श्री कृष्ण के समागम से जो प्रेम लीला जनित स्वेत जल कण अंग सम्पूर्ण अंगो से प्रकट होते है उनका संपर्क सुलभ हो जाता है
तवाष्टकमिदं मुदा पठति सूरसूते सदा
समस्तदुरितक्षयो भवति वै मुकुन्दे रतिः ।
तया सकलसिद्धयो मुररिपुश्च सन्तुष्यति
स्वभावविजयो भवेत वदति वल्लभः श्री हरेः ॥९॥

अर्थ :-
हे सूर्य करण हे यमुने जो तुम्हारे इस आठ श्लोको की स्तुति का प्रसन्ता पूर्वक सदा पाठ करता है उसके सारे पाप का नाश हो जाता है और उसे भगवान् श्री कृष्ण का प्रगाढ़ प्रेम प्राप्त होता है इतना ही नहीं सारी सिद्धियां सुलभ हो जाती है भगवान श्री कृष्ण संतुष्ट होते है और स्वभाव पर भी विजय प्राप्त हो जाती है यह श्री हरी के वल्ल्भव का कथन है हे यमुने मै तुम्हे बारम्बार प्रणाम करता हूँ तुम्हारा वंदन करता हूँ
इति श्री वल्लभाचार्य विरचितं यमुनाष्टकं सम्पूर्णम ॥ इस प्रकार श्रीमद वल्ल्भवाचार्य विरचित यमुना अष्टकम सम्पूर्ण हुआ माँ यमुना
सदा सर्वदा सबका कल्याण करे जय माँ यमुने जय सिया राम

श्री यमुनाअष्टकम लिरिक्स अंग्रेजी में (Shree Yamuna Ashtkam Lyrics in English)

Shrii yamunaa ashṭakam shriimad vallbhavaachaary dvaaraa virachit divy yamunaa ashṭakam ko shravaṇ kiijiye yamanujaa yamunaa jii ko yamaanujaa kahaa gayaa hai yaanii yam kii bahan hai vo har prakaar ke sankaṭ se aapako mukti dengii aaiye sadchit hok dhyaan lagaa ke yamunaa ashṭakam shravaṇ kiijiye
Namaami yamunaamaham sakal siddhi hetun 
Mudaa muraari pad pankaj sfuradamand reṇutkaṭaam .
Taṭasth nav kaanan prakaṭamod pushpaambunaa 
Suraasurasupuujit smarapituah shriyam bibhratiim ॥१॥

Arth :- 
Mai sampuurṇ siddhion kii hitu hotaa shrii yamunaa jii ko saanand namaskaar karataa huun jo bhagavaan muraarii ke chamakiilii owr amand mahimaa vaalii dhur dhaaraṇ karane se atyant utkarsh ko praapt huyii hai owr taṭavatii nuutan kaanand se sushobhit jal raashi ke dvaaraa dev daanav vandit pradum pitaa bhagavaan shrii kṛshṇ kii shyaam sushamaa ko dhaaraṇ karatii hai aisii maan yamunaa ko mai praṇaam karataa huun

Kalind giri mastake patadamandapuurojjvalaa
Vilaasagamanollasatprakaṭagaṇḍshailonntaa .
Saghoshagati danturaa samadhiruuḍhadolottamaa
Mukundarativarddhinii jayati padmabandhoah sutaa ॥२॥

Arth :-
Kalind parvat ke shikhar par giratii huyii tiin praveg vaalii jaladhaaraa se jo atyant ujjaval jaan padatii hai ,liilaa vilaas puurvak chalane ke kaaraṇ sobhaayamaan hai saamane prakaṭ huyii chaṭṭaanon se jinakaa pravaah kuchh uunchaa ho jaataa hai gambhiir garjan yukt ke kaaraṇ jiname uunchii uunchii lahare uṭhatii hai  owr uunche niiche pravaah ke dvaaraa jo uttam jhuule par jhuulatii huyii sii pratiit hotii hai bhagavaan shrii kṛshṇ ke prati pragaadh anuraag kii vṛddhi karane vaalii ve suury sutaa yamunaa sarvatr vijayanii ho rahii hai
Bhuvam bhuvanapaavaniimadhigataamanekasvanaiah
Priyaabhiriv sevitaan shukamayuurahamsaadibhiah .
Tarangabhujakankaṇ prakaṭamuktikaavaakukaa-
Nitanbataṭasundariin namat kṛshṇturyapriyaam ॥३॥

Arth :-
Jo is bhuutal par praadhaarakar samast bhuvan ko pavitr kar rahii hai shuk mayuur owr hams aadi pakshii bhaati bhaati ke kalaraavo dvaaraa priy sakhiyon kii bhaati jinakii sevaa kar rahe hai jinakii tarang rupii bhujaaon ke kangan men jade hue mukt rupii motii ke kaṇ hii baalukaa ban kar chamak rahe hai tathaa jo nitamb sadṛshy taṭon ke kaaraṇ atyant sundar jaan padatii hai un shrii kṛshṇ kii chowthii paṭaraanii shrii yamunaa jii ko namaskaar karo
Anantaguṇ bhuushite shivaviranchidevastute
Ghanaaghananibhe sadaa dhruvaparaasharaabhiishṭade .
Vishuddh mathuraataṭe sakalagopagopiivṛte
Kṛpaajaladhisamshrite mam manah sukham bhaavay ॥४॥

Arth :-
Devii yamune tum anant guṇon se vibhuushit ho shiv owr brahmaa aadi devataa tumhaarii stuti karate hai megho kii ghaṭaa ke saamaan tumhaarii amg kaanti sadaa shyaam hai dhruv owr paraasar jaise bhaktajano ko tum abhishṭ vastr pradaan karane vaalii ho tumhaare taṭ par vishuddh mathuraa puurii sushobhit hai samast gop owr gopiyaan sundarii tumhe ghere rahatii hai tum karuṇaa saagar bhagavaan shrii kṛshṇ ke asridh ho he maan yamunaa mere amt karaṇ ko sukhii banaao
Yayaa charaṇapadmajaa muraripoah priyam bhaavukaa
Samaagamanato bhavatsakalasiddhidaa sevataam .
Tayaa sahshataamiyaatkamalajaa sapatniivay-
Haripriyakalindayaa manasi me sadaa sthiiyataam ॥५॥

Arth :-
Bhagavaan vishṇu ke charaṇaar bindu se prakaṭ huyii gangaa jinase milane ke kaaraṇ hii bhagavaan ko priy huii owr apane sevak ke lie sampuurṇ siddhion ko dene vaalii un yamunaa jii kii samataa keval lakshmii jii kar sakatii hai owr vah bhii ek sapatnii ke sadṛshy aisii mahatv shaalinii shrii kṛshṇ priyaa kaaliin nandanii yamunaa sadaa mere men nivaas kare
Namostu yamune sadaa tav charitr matyadbhutam
N jaatu yamayaatanaa bhavati te payah paanatah .
Yamopi bhaginiisutaan kathamuhanti dushṭaanapi
Priyo bhavati sevanaattav hareryathaa gopikaaah ॥६॥
He yamune tumhe sadaa namaskaar hai tumhaaraa charitr atyant adbhut hai tumhaaraa jal piine se kabhii yam yaatanaa nahiin bhoganii padatii hai apanii bahan ke putr dushṭ ho bhii to yamaraaj unhen kaise maar sakate hai tumhaarii sevaa se manushy gopanaago kii bhaati shyaam sundar bhagavaan shrii kṛshṇ kaa priy ho jaataa hai
Mamaastu tav sannidhow tanunavatvametaavataa
N durlabhatamaaratirmuraripow mukundapriye .
Atostu tav laalanaa suradhunii param sungamaa-
Ttavaiv bhuvi kiirtitaa n tu kadaapi pushṭisthitaiah ॥७॥

Arth :-
Shrii kṛshṇ priy yamune tumhaare samiip mere shariir kaa nav nirmaaṇ mujhe nuutan shariir dhaaraṇ karane kaa avasar mile itane se hii muraarii shrii kṛshṇ men pragaadh anuraag durlabh rah jaataa hai atah tumhaarii achchhii tarah stuti prasamsaa hotii rahe tumako laaḍ ladaayaa jaae tumase milane ke kaaraṇ hii dev nadii gangaa is bhuutal par utkṛshṭ bataaii gaii hai parantu pushṭimaargii vaishṇav ne tumhaare saath sangam ke binaa keval gangaa kii stuti nahiin kii
Stuti tav karoti kah kamalajaasapatni priye
Hareryadanusevayaa bhavati sowkhyamaamokshatah .
Iyam tav kathaadhikaa sakal gopikaa sangam-
Smarashramajalaaṇubhiah sakal gaatrajaiah sangamah ॥८॥

Arth :-
Lakshmii kii patnii harii priy yamune tumhaaro stuti kown kar sakataa bhagavaan

 kii sevaa se nirantar moksh sukh praapt hotaa hai parantu tumhaare lie vishesh mahatv kii baat yah hai kii tumhaare jal kaa sevan karane se sampuurṇ gop sundariyon ke saath shrii kṛshṇ ke samaagam se jo prem liilaa janit svet jal kaṇ amg sampuurṇ amgo se prakaṭ hote hai unakaa sampark sulabh ho jaataa hai
Tavaashṭakamidam mudaa paṭhati suurasuute sadaa
Samastaduritakshayo bhavati vai mukunde ratiah .
Tayaa sakalasiddhayo muraripushch santushyati
Svabhaavavijayo bhavet vadati vallabhah shrii hareah ॥९॥

Arth :-
He suury karaṇ he yamune jo tumhaare is aaṭh shloko kii stuti kaa prasantaa puurvak sadaa paaṭh karataa hai usake saare paap kaa naash ho jaataa hai owr use bhagavaan shrii kṛshṇ kaa pragaadh prem praapt hotaa hai itanaa hii nahiin saarii siddhiyaan sulabh ho jaatii hai bhagavaan shrii kṛshṇ santushṭ hote hai owr svabhaav par bhii vijay praapt ho jaatii hai yah shrii harii ke vallbhav kaa kathan hai he yamune mai tumhe baarambaar praṇaam karataa huun tumhaaraa vandan karataa huun
Iti shrii vallabhaachaary virachitam yamunaashṭakam sampuurṇam ॥ is prakaar shriimad vallbhavaachaary virachit yamunaa ashṭakam sampuurṇ huaa maan yamunaa
Sadaa sarvadaa sabakaa kalyaaṇ kare jay maan yamune jay siyaa raama

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